शुरू किया था जहा से मैंने आज सब वही ख़तम कर आये है
जितनी चाहत से चाहा था तुम्हे मैंने हर एहसास को अब दफ़न कर आये है
बस कुछ और दिनों की बात है ये शायद की कुछ दिन और उन्हें हम जो नजर आयेंगे
फिर खोल देंगे उन्हें पाने की चाहत अपने बंद हाथो लकीरों से आज तक जो जतन कर आये है
सब कुछ तो है अब भी मेरे पास एक सिवा तुम्हारे
फिर क्यों सब खोने का इन आँखों में भरम लाये है
जितनी चाहत से चाहा था तुम्हे मैंने हर एक को अब दफ़न कर आये है
शुरू किया था जहा से मैंने आज सब वही ख़तम कर आये है
No comments:
Post a Comment