Saturday, February 26, 2011

अब हमसे कोई बात न पूछो …


हमें  यु  छोड़  जाओ  युही   की  अब  हमसे  कोई  बात  न  पूछो  ….
जिक्र  न  कर  बैठे  हम  कही  फिर  से  उन्ही  का  की  अब  हमसे  कोई  बात  न  पूछो  …

मत  पूछो   की  कितने  सितारे  हमारे  पहलू  में  है
की  अभी  भी  है  सब  पे  लिखा  नाम  उन्ही  की  हमसे  कोई  बात  न  पूछो  ….

छोड़  जाने  दो  हमें  अब  ये  सफ़र  यही  पर   की  अब  मंजिल  देखने की भी  चाहत  नहीं …..
कितना  दूर  अभी  और  सफ़र  हैं , और कितने  बचे  दिन  रात   न  पूछो …..
जिक्र  न  कर  बैठे  हम  कही  फिर  से  उन्ही  का  की  अब  हमसे  कोई  बात  न  पूछो  …

कसूर  ऐसे  हुआ  हमसे  की  हमें  भी  इसका  पता  न  चला  …..
अब  लाकर  उन्हें  हमारे  पास  मेरे  गुनाहों  का  हिसाब  न  पूछो ….
जिक्र  न  कर  बैठे  हम  कही  फिर  से  उन्ही  का  की  अब  हमसे  कोई  बात  न  पूछो  …

Tuesday, February 15, 2011

फिर भी लगे अजनबी मिला.......





जिंदगी के सफ़र में दो कदम के राहो में कोई ऐसा भी यु मिला जानती हूँ हर एक अंदाज को उसके फिर भी लगे अजनबी मिला ,

खो जाती हूँ उसे देख कर ,मुस्कराहट हो जाती है गुम पर हस देता है वो जब कभी यु लगे इन लबो को हसी मिला .......फिर भी लगे अजनबी मिला


Tuesday, February 8, 2011

जिंदगी मान बैठे.......


तुमसे  नज़रे  क्या  मिली  रोशनी  मान   बैठे 
इस  दिल  का  अब  क्या  करे  जो  तुम्हे  जिंदगी  मान   बैठे 

यु  लगता  है  जैसे  बरसो  हो  गए  है   मुसुकुराए 
जबसे  तुम्हे  हसी  मान  बैठे  नजरे  बिछाये  ही  रह  गए  उस रस्ते पर
जिसकी  तुम्हे  मंजील  मान  बैठे 
इस  दिल  का  अब  क्या  करे  जो  तुम्हे  जिंदगी  मान  बैठे 

खुदा  भी  रूठ  गया  हमसे  जो  तुम्हे  खुदा  मान  बैठे 
और  तेरी  ख़ुशी  के  लिए  तुम्हे  भी  खुद   से  जुदा  मान  बैठे 
तेरे  होने  को  अपनी  ख़ुशी  मान  बैठे 
इस  दिल  का  अब  क्या  करे  जो  तुम्हे  जिंदगी  मान  बैठे 


तेरी  बेरुखी  को  तेरी  अदा  मान  बैठे 
ख़ामोशी  को  भी  तेरी  ,तेरी  वफ़ा  मान  बैठे 
क्या  कहे  की  तुम्हे  क्या  मान  बैठे , समझो  तो  सारा  जहा  मान  बैठे 
तेरे  होने  को  अपनी  ख़ुशी  मान  बैठे 
इस  दिल  का  अब  क्या  करे  जो  तुम्हे  जिंदगी  मान  बैठे 

शुरू किया था जहा से मैंने


शुरू  किया  था  जहा  से  मैंने  आज  सब  वही  ख़तम  कर  आये  है 
जितनी  चाहत  से  चाहा  था  तुम्हे  मैंने  हर  एहसास   को  अब  दफ़न  कर  आये  है 

बस  कुछ  और  दिनों की  बात  है  ये  शायद  की  कुछ  दिन  और उन्हें  हम  जो   नजर  आयेंगे 
फिर  खोल  देंगे  उन्हें  पाने  की  चाहत  अपने  बंद  हाथो  लकीरों  से  आज  तक  जो  जतन   कर  आये  है 

सब  कुछ  तो  है  अब  भी  मेरे  पास  एक  सिवा  तुम्हारे 
फिर  क्यों  सब  खोने  का  इन  आँखों  में  भरम  लाये  है 

जितनी  चाहत  से  चाहा  था  तुम्हे  मैंने  हर  एक  को  अब  दफ़न  कर  आये  है 
शुरू  किया  था  जहा  से  मैंने  आज  सब  वही  ख़तम  कर  आये  है 
                                                               

Thursday, February 3, 2011

थोड़ी दूर साथ चलो,

कठिन है रहगुजर थोड़ी दूर साथ चलो ,
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो ,

उम्र भर यहाँ कौन साथ देता है हम जानते है मगर ,
थोड़ी दूर साथ चलो,

ये एक शब् की मुलाकात भी गनीमत है ,
किसे है कल की खबर ,
थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो जाग रहे है चिराग राहो के ,
अभी तो अभी है दूर शहर थोड़ी दूर साथ चलो ,
थोड़ी दूर साथ चलो
anonymous